ज़िन्दगी गुलज़ार है
२५ अप्रैल – ज़ारून
कुछ दिन इतने ख़ूबसूरत होते हैं कि आपको हमेशा याद आते रहते हैं, हालांकि
आपको ज़ाहिरन उन दिनों में कुछ नहीं मिलता. आजका दिन भी ऐसा ही था. आज पहली बार मैं
कशफ़ को झुकाने में कामयाब हुआ हूँ और इस ख़ुशी को, इस अहसास
को मैं अल्फ़ाज़ में बयां नहीं कर सकता.
आज सर अबरार ने कशफ़ को अपने घर बुलाया था. मैं सुबह से उनके पास था
क्योंकि कशफ़ ने अपने आने का वक़्त नहीं बताया था. जब मुलाज़िम ने उसके आने की ख़बर दी, तो
सर अबरार ने मुझे साथ वाले कमरे में भेज दिया. मैं एक चेयर उठा कर उस कमरे के
दरवाज़े के पास ले आया और दरवाज़ा थोड़ा सा खोल दिया, ताकि उनके
दरम्यां होने वाली गुफ्तगू सुन सकूं. जहाँ मैं बैठा था, वहाँ
से उनकी पुश्त साफ़ नज़र आ रही थी, लेकिन वो मुझे नहीं देख
सकती थी, सो मैं खासा बेफ़िक्र था.
रस्मी बात-चीत के बाद सर अबरार से उसने इस बुलावे की वजह पुपूछी
थी.
“कशफ़ कुछ दिन पहले ज़ारून के पेरेंट्स तुम्हारे घर
आये थे.”
सर अबरार ने बात शुरू की. मैं उसका चेहरा नहीं देखा सकता था, लेकिन
उसके बोलने से अंदाज़ा हुआ कि वो काफ़ी हैरान हुई थी.
“सर! आपको कैसे पता चला?”
“उन्हें मैंने ही तुम्हारे घर भेजा था.”
“तो फिर आज भी आपने मुझे इसलिए बुलाया होगा.”
“हाँ, मैंने तुम्हें ये जानने
के लिए बुलाया है कि तुम इंकार क्यों कर रही हो.”
“सर! आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैं इंकार क्यों कर
रहो हूँ और मुझे आपसे कम-अज़-कम ये तवक्को नहीं थी कि आप उसकी सिफ़ारिश करेंगे.”
उसके लहज़े में शिकायत नुमायां थी.
“देखो कशफ़! अगर तुम्हारे इंकार की वजह महज़ वो वाक़या
है, तो ये कोई वजह नहीं है. वो सब माज़ी का हिस्सा है और माज़ी
को भुला देना बेहतर होगा. फिर उसने तब भी तुमसे माफ़ी मांग ली थी और अब भी अगर तुम
चाहो, तो वो दोबारा माज़रत (माफ़ी मांगने) करने के लिए तैयार
है. इस एक बात के अलावा तुम किस बुनियाद पर ये प्रपोजल रिजेक्ट कर रही हो?”
सर अबरार उसे कायल करने की कोशिश कर रहे थे.
“सर आप उसकी तरफ़दारी क्यों कर रहे हैं?”
“क्योंकि वो मेरा स्टूडेंट है और तुम भी और हर टीचर
अपने स्टूडेंट्स की बेहतरी ही चाहता है और फिर मैं उससे ज्यादा तुम्हारी बेहतरी के
लिए सोच रहा हूँ. तुम्हें उससे अच्छा शख्स नहीं मिलेगा.”
“आप उसे अच्छा क्यों कह रहे हैं? क्या सिर्फ़ दौलत और ख़ूबसूरती की वजह से? ये दोनों
चीज़ें कभी मुझे इंस्पायर करती थी, अब नहीं. अब मेरी ज़िन्दगी
में इनकी अहमियत काफ़ी कम हो चुकी है और उस प्रपोजल से इंकार की वाहिद (अकेली) वजह
वो वाक़या नहीं है. और भी बहुत से वजहात हैं. सर मैं बहुत अमली (व्यवहारिक) और
हकीक़त पसंद हूँ. मैं उन लड़कियों में से नहीं हूँ, जो सिर्फ़
ये देख कर शादी कर लेती हैं कि अमीर बंदे से शादी करके वो मिडिल क्लास से अपर
क्लास में चली जायेंगी. मेरी बहनों की शादी वहाँ हुई है, जहाँ
बे-तहाशा पैसा नहीं है, मगर वहाँ उनकी इज्ज़त और कदर ज़रूर की
जाती है. उन्हें ये फ़िक्र नहीं कि पता नहीं उनका शौहर कहाँ होगा, किसके साथ होगा, क्या कर रहा होगा? उन्हें ये मसला नहीं है कि उनके शौहर के अफेयर्स है या ऐसी दूसरी चीज़ें.
और आप ज़ारून को लें, मैं ऐसे बंदे से कैसे शादी कर सकती हूँ,
जिसका माज़ी मेरे सामने है, जो औरत को वक़्त
गुज़ारने का ज़रिया समझता है, जो औरत की इज्ज़त करना नहीं
जानता. आप कहेंगे वो बदल गया है. मैंकहती हूँ कि वो नहीं बदला ना ही बदल सकता है.
फिर हमारी और उसके खानदान के दरमियाँ कोई मैच नहीं है. ये तब्काती (सामाजिक) फ़र्क
मेरे लिए हमेशा अज़ाब (मुसीबत) रहेगा. मैं मिडिल क्लास से ताल्लुक रखती हूँ और वो
ये बात कभी नहीं भुला सकेगा. मेरी हर गलती को वहाँ एक्सप्लॉइट किया जायेगा. हर बात
पर नुक्ता-चीनी की जायेगी. इंसान अपनी ज़िन्दगी को आसान बनने के लिए शादी करता है,
मज़ीद मुश्किल बनाने के लिए नहीं. सो मैं ज़ारून से शादी नहीं कर
सकती.”
वह अपनी बात कहकर चुप हो गयी. सर अबरार भी चुप थे. मैं दरवाज़ा होल
कर स्टडी में आया. कशफ़ ने पीछे मुड़कर देखने की कोशिश नहीं की.
“कशफ़! क्या ये बेहतर नहीं है कि तुम ख़ुद ज़ारून से
बात कर लो.” सर अबरार मुझे देख कर बोले थे.
“अब किसी बात की ज़रुरत नहीं है. वो सब कुछ सुन चुका
है और वो मुझे कायल नहीं कर सकता.”
मैं उसकी बात पर हैरान रह गया था. वो मेरी मौजूदगी से बे-ख़बर नहीं
थी और सर अबरार मुझसे ज्यादा हैरान थे. मैं कुर्सी खींच कर उसके पास बैठ गया.
“हाँ मैं तुम्हारी सारी बातें सुन चुका हूँ और तुम
भी मुझे कायल नहीं कर सकी. तुम्हारी सारी वजहात तुम्हारे ज़ाती मफरूज़ात (मनगढ़ंत
बातें, कल्पना की गई बातें) पर बनी है और ज़िन्दगी मफरूज़ात
(मनगढ़ंत बातें, कल्पना की गई बातें) के सहारे नहीं गुजारी जा
सकती.”
उसने मेरी तरफ़ देखा ना मेरी बात का जवाब दिया. बस कार के रिंग से
टेबल को खुरचती रही.
“तुम दोनों बैठो, मैं अभी आता
हूँ.”
सर अबरार वहाँ से चले गये. उनके बाहर जाते ही उसने कहा, “देखो
जो मेरा फैसला था, वो मैं सुना चुकी ह्हूँ, फिर बहस करने की क्या ज़रूरत है?”
“देखो कशफ़! मैं वैसा नहीं रहा, जैसा पहले था. मैं वाकई बदल चुका हूँ. किसी को बदलने के लिए एक लम्हा ही
काफ़ी होता है, तो क्या मुझे बदलने के लिए सात साल काफ़ी अरसा
नहीं है? मैं जानता हूँ मैं परफेक्ट नहीं हूँ. तुम भी
परफेक्ट नहीं हो. कोई भी परफेक्ट नहीं होता. बस कुछ लोग दूसरों से बेहतर होते हैं
और कुछ बदतर. तुम्हारे नज़दीक मैं बेहतर नहीं हूँ. अपनी नज़र में मैं बदतर नहीं हूँ
और तुम्हारे नज़दीक क्लास कबसे अहम होने लगी? तुम तो कहा करती
थी कि शर्म इस बात पर आनी चाहिए, अगर अप बुरे काम करें,
आप चोर हों, किसी को तकलीफ पहुँचायें, किसी को कत्ल कर दें. इस बात पर नहीं कि आप गरीब हैं. तुम्हारे नज़दीक तो
मेरी क्लास इज्ज़त के काबिल भी नहीं है, फिर आज ये तबदीली
क्यों?”
“सिर्फ़ मेरे कहने से क्या होता है. इज्ज़त के काबिल
तो सिर्फ़ तुम लोगों को ही समझा जाता है.” उसका अंदाज़ फिर वही था.
“लेकिन मैं तुमसे मोहबत करता हूँ.”
“एक पैदाएशी फ़्लर्ट के मुँह से ये बातें अच्छी नहीं
लगती.” वो मेरी बात पर गुर्राई थी, “ऐसी लड़कियों की तादात
हज़ारों में नहीं, तो सैकड़ों में ज़रूर होगी, जिनसे तुम यही जुमला कह चुके हो.”
“लेकिन मैं तुमसे सच्ची मोहब्बत करता हूँ.”
“सच्ची मोहब्बत ये भी तुम बहुत लड़कियों से कर चुके
हो. तुम जैसा शख्स जब ये बात करता है, तो मुझे हँसी आती है.
तुम हर लड़की को एक ही सब्ज़-बाग़ दिखाने बैठ जाते हो.”
“मैं अब भी यही कहूंगा कि मैं तुमसे मोहब्बत करता
हूँ.”
मैंने बड़े इत्मिनान से अपनी बात दोहराई.
“देखो मैं कोई टीन-एज़र नहीं हूँ, जिसे तुम बातों से बहलाओ और वो बहल जाये. क्या होती है ये मोहब्बत और बकौल
तुम्हारे सच्ची मोहब्बत? हमारे मज़हब और मु’आशरा (समाज) में
कहाँ इसकी गुंजाइश है? एक ढोंग रचाया होता है तुम लोगों ने,
लड़कियों से फ़्लर्ट करने ले लिए, धोखा देने के
लिए और तुम उन्हें बेवकूफ बनाने में कामयाब रहे हो. लेकन इस किस्म की सच्ची
मोहब्बत की ना मुझे ज़रूरत है और ना ही अहमियत है. सो बेहतर है, ये ढोंग तुम किसी और के सामने करो.”
उसका चेहरा गुस्से से सुर्ख हो रहा था, मगर
मुझे उसकी बातें बुरी नहीं लगी.
“तुमने जो कुछ कहा, मैं उससे
इंकार नहीं करता. सिवाय इस बात के कि मैं तुमसे फ़्लर्ट कर रहा हूँ. जो फ़्लर्ट करते
हैं, वो ना तो अपनी प्रपोजल भेजते हैं और ना ही इस तरह अपनी
इन्सल्ट बर्दाश्त करते हैं. मेरे बारे में तुम्हें जो कुछ कहा वो ठीक ही. ज़ाहिर है
तुम मेरे साथ पढ़ती रही हो, सो मेरे माज़ी से वाकिफ़ हो.
तुम्हारे ख़याल में न तो मैं शरीफ़ हूँ, न औरत की इज्ज़त करता
हूँ. लेकिन क्या तुम ये बात यकीन से कह सकती हो कि जिस शख्स से तुम शादी करोगी,
वो पारसा होगा, उसे औरत की इज्ज़त करना आता
होगा, उसका न तो कभी किसी और से अफेयर रहा होगा, न ही उसने कभी किसी लड़की की तरफ़ गलत नज़र से देखा होगा. नहीं कशफ़! तुम कभी
भी ये बात यकीन से नहीं कह सकती. हो सकता है, तुम्हारा शौहर
तुमसे अपना माज़ी छुपायेगा. तुम्हारे सामने वो ख़ुद को बड़ा अच्छा ज़ाहिर करेगा,
जैस मैं अपनी बीवी से अपना माज़ी छुपाऊंगा और वो मुझे बहुत अच्छा
समझेगी, जब तक कि मेरी गलती उसने सामने ना आयेगी. क्या तुम
भी यही नहीं करोगी? मुझ पर तुम्हें इसलिए एतराज़ है कि तुम्म
मेरे माज़ी से वाकिफ़ हो, अपने शौहर पर इसलिए एतराज़ नहीं होगा
क्योंकि उसका माज़ी तुमसे पोशीदा (छुपा) होगा और अगर कभी उसके ख़राब माज़ी के बारे
में जान गयी, तो फिर क्या करोगी? क्या
उसे छोड़ दोगी या माफ़ करोगी? क्या उस वक्त मैं तुम्हें याद
नहीं आऊंगा? क्या तुम ये नहीं कर सकती कि मेरे माज़ी की
गलतियों के लिए मुझे माफ़ कर दो. मैं गलतियों से सीखने वाला आदमी हूँ और जिस उम्र
में तुमसे ये कह रहा हूँ, वो तो ज़ज्बाती भी नहीं है और टू बी
वैरी फ्रैंक मैंने कभी किसी औरत को खराब करने की कोशिश नहीं की. मैं औरत की इज्ज़त
नहीं करता था और अब भी नहीं करता हूँ, मगर मेरा रोमांस या
अफ़ेयर सिर्फ़ यहीं तक था कि मैं लड़कियों को तोहफ़े देता, चंद
डायलॉग बोल देता, ड्राइव पर ले जाता, या
किसी होटल में डिनर के लिए. इससे ज्यादा कुछ नहीं. मैंने कभी आखिरी हद पार करने की
कोशिश नहीं की. कुछ पाबंदियाँ मैंने ख़ुद पर लगा रखी थी और वो आज भी हैं. मुझे अपना
करियर बनाना था और गलत चीज़ों में पड़ कर मैं इसे तबाह कर बैठता और मैं ये नहीं
चाहता था. हो सकता है, तुम्हें मेरी बातों पर यकीन ना आये,
लेकिन मैं सच कह रहा हूँ. लेकिन अगर तुम मेरा प्रपोजल रिजेक्ट करोगी,
तो क्या होगा? ये बीसवीं सेंचुरी है, जो लेने का ज़माना तो नहीं है. शादी तो मुझे करनी ही है, आज नहीं तो चंद साल बाद सही. तुम्हारे जैसी लड़की मुझे मिल ही जायेगी
क्योंकि तुम दुनिया में वाहिद (अकेली) लड़की नहीं हो. हाँ मगर मैं तुम्हें मिस ज़रूर
करूंगा, क्योंकि उसमें हर ख़ूबी सही, फिर
भी वो कशफ मुर्तज़ा नहीं होगी. अपने दिल से मेरे खिलाफ़ मैल दूर करके देखो, शायद तुम्हें फैसले में आसानी हो. फिर अगर तुमने मेरे हक़ में फ़ैसला ना भी
किया, तब भी मैं तुम्हें दोबारा तंग नहीं करूंगा. लेकिन एक
दफ़ा पूरी तरह से अन-बायस्ड होकर मेरे बारे में सोचो.”
वो बिना कुछ कहे वहाँ से चली गई.
सर अबरार जब स्टडी में आये, तो उन्होंने पूछा, “क्या कहा
उसने?”
“अभी तो कुछ नहीं कहा. मैंने उसे सोचने के लिए वक़्त
दिया है.” फिर उन्हें विश करता हुआ मैं घर आ गया. तकरीबन डेढ़ घंटे के बाद सर अबरार
ने मुझे फोन किया था.
“ज़ारून, अब तुम आइंदा मेरे घर
मिठाई लेकर आना.” उन्होंने छूटते ही कहा था.
“मिठाई किस लिए?” मैं कुछ
हैरान हुआ.
“भाई कशफ़ मान गयी है, इसलिए.”
“व्हाट, इतनी जल्दी.” मैं
हैरान रह गया था.
“इतनी जल्दी से तुम्हारा क्या मतलब है? क्या वो पाँच-दस साल बाद कुछ कहती.”
“सर उसने कहा क्या है?’ मैं
काफ़ी बेचैन था.
“उसने कहा है कि तुम अपना प्रपोजल भेजो, अगर उसके वालिदान को मुनासिब लगा, तो ठीक है,
वो इंकार नहीं करेगी.” सर अबरार ने मुझे बताया.
मैंने शुक्रिया अदा करके फोन रख दिया. फिर शाम को मैंने कशफ़ को फोन
किया था. वो वापस फ़ैसलाबाद पहुँच चुकी थी. उसका शुक्रिया अदा करने के बाद मैं उससे
कुछ बातें करना चाहता था, मगर उसने अपनी मशरूफियत का कह कर फोन बंद कर दिया
और अब डायरी लिखते हुए मैं सोच रहा हूँ कि वो इतनी बुरी भी नहीं है.
shahil khan
20-Mar-2023 07:03 PM
nice
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Radhika
09-Mar-2023 04:22 PM
Nice
Reply
Alka jain
09-Mar-2023 04:09 PM
शानदार
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